दांत दर्द की आयुर्वेदिक दवा एवं उपचार

by | Nov 26, 2020 | Health Tips & Treatments

दांत में दर्द एक ऐसी समस्या है, जिसे व्यक्ति जीवन में कभी न कभी अवश्य अनुभव करता है। आयुर्वेद में दांत दर्द को दंतशूल (Toothache) कहा जाता है। इसके उपचार हेतु आयुर्वेद में विभिन्न जडी बूटियाँ, ओषधियाँ एवं विधियाँ बताई गई हैं। दंतशूल (Toothache) के उपचार में लवांगया लौंग (Lavangaya Cloves), तुलसी (Basil), नीम (Azadirachta Indica), नंदीपुष्प (Nandipush), चित्रक (Chitrak) जैसी जड़ी बूटियां एवं यवनादिचूर्ण (Yavanadi Powder), खदिरादी वटी (Khadi Wadi), जाति पत्रादि जैसी ओषधियों का प्रयोग किया जाता है। इनके अतिरिक्त अभ्यंग (Abhyang), गंदूष (Goose), कवल (Kaval) ओर लेप (Coating) विधि का प्रयोग भी दंतशूल (Toothache) में किया जाता है।

अभ्यंग (Abhyang):- इस विधि में ओषधीय तेल द्वारा प्रभावित क्षेत्र पर मालिश की जाती है। इससे मसूडों ओर दांतो में जमा अतिरिक्त वात को कम किया जाता है। शहद (Honey) व मंजिष्ठा (Manjistha) का उपयोग इस विधि में किया जाता है।

गंदूष (Goose):- इस विधि में ओषधीय तेल या तरल को मुँह में डाला जाता है, जिससे कृदंत (Participle) में आराम मिलता है। इस विधि में जौ के काढ़े (Barley Decoction), अरंडी की जड़ (Castor Root) एवं तिल के काढ़े (Decoction of Sesame Seeds) का प्रयोग किया जाता है।

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कवल (Kaval):- इस विधि में ओषधीय तेल एवं काढ़े से गरारे करवाये जाते हैं। केवल हेतु त्रिफ़ला (Triphala), खदिरा (Khadira) की लकड़ी एवं अर्जुन की छाल (Bark of Arjuna) का प्रयोग किया जाता है।

लेप (Coating):- इसके लिए विभिन्न जड़ी बूटियों से हर्बल पेस्ट बनाकर त्वचा (Skin) पर लगाया जाता है। मुख्य रूप से वच (Vacha), रसोनम (Rasonam) और तुलसी (Basil) का प्रयोग इस विधि में किया जाता है। अरंडी की टहनी को भी दातुन के रूप में प्रयोग करने से दंतशूल (Toothache) में आराम मिलता है।

दंत शूल की आयुर्वेदिक दवा (Ayurvedic Medicine Of Dental Pain):-

चित्रक (Chitrak):- वात एवं कफ को नियंत्रित करने वाली यह औषधि चबाने से दंतशूल (Toothache) में आराम मिलता है।

नंदीपुष्प (Nandipush):- इस सजावटी पौधे की जड़ दंतशूल में आराम देती है।

लवांग (Lavang):- यह दर्द निवारक उत्तेजक एवं कफ निस्सारक होती है। इसे दांत दर्द से राहत पाने के लिए तेल के रूप में प्रयोग किया जाता है।

नीम (Azadirachta Indica):- यह जीवाणु-रोधी एवं घाव भरने वाली जडी बूटी है। यह दांतो एवं मसूडों के घाव भर्ती है तथा दांत दर्द को कम करती है। इसका उपयोग दातुन एवं तेल के रूप में किया जाता है।

तुलसी (Basil):-यह जीवाणु रोधी (Antibacterial) एवं सूजनरोधी (Anti inflammatory) होती है तथा तंत्रिका तंत्र (Nervous System) पर कार्य करती है। यह दांत एवं मसूडों के दर्द में प्रभावी दर्द निवारक सिद्ध होती है।

हिंगु (Hingu):- यह कृमिनाशक (Anthelmintic) एवं दर्द निवारक होती है। यह वात के कारण दांतो व मसूडों (Masoodo) में होने वाले दर्द को नियंत्रित करती है।

यवनादिचूर्ण (Yawanaadi Churn):- इसमे हरीत की, अजवायन (Parsley), कालानमक (Black Salt), सेंधा नमक (Rock salt) व हिंगु (Hingu) का मिश्रण होता है। इसके प्रयोग से दांतों की अति संवेदन शीलता (Hyper Sensitivity), दर्द एवं मुँह की बदबू से राहत मिलती है। इसके अतिरिक्त जाति पत्रादि गुटिका, खदिरादी वटी ( Khadiradi Vati) आदि ओषधियाँ दंतशूल में लाभदायक सिद्ध होती हैं।

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Dr Neha
Compiled By:
Dr. Neha Ahuja
(BAMS, NDDY, DNHE)

 

 

 

 

 

 

 

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