परिचय:
आयुर्वेद ग्रंथों में वातव्याधि के अंतर्गत अनेक व्याधियों का वर्णन किया गया। वात व्याधियों की निर्मिती दूषित वातदोष के कारण होते हैं। सामान्य अवस्था में वातदोष का एक प्रमुख कार्य शरीर के विभिन्न अवयवों को अलग अलग रखना होता है । प्रकुपित अवस्था में वातदोष के कारण अस्थि तथा संधियों के क्षय की अवस्था की निर्माण होती है, जिसे अस्थिक्षय विकार कहते हैं ।
उक्त बीमारी का निर्माण निम्न से होताहैः-
आहार (Diet)-
- अत्यधिक मात्रा में कशेले कड़वे एवं तेज ऐसे पदार्थों का सेवन।
- अत्यंत सूखे एवं वात बनाने वाले पदार्थ।
- अल्पमात्रा में आहार तथा अधिक समय तक भूखे रहना।
विहार (Life style)
- अत्यधिक व्यायाम।
- अधिक मात्रा मे शरीर क्रियाए।
- मलमूत्र आदि नैसर्गिक बेगो का धारण करना।
बढ़ती उम्र इस रोग का एक प्रधान कारण है लेकिन आजकल के अयोग्य रहन-सहन शारीरिक एवं मानसिक तनाव के कारण यह रोग बड़ी मात्रा में दिखाई दे रहा है ।
लक्षण (Symptom)
- गर्दन में पीड़ा ।
- गर्दन से लेकर हाथ की उंगलियों में संचारी वेदना।
- कमर दर्द।
- कमर से लेकर पैर की उंगलियों में वेदना ।
- कमर में जकड़ाहट।
- मांसपेशियों की दुर्बलता।
- हाथों में कमजोरी।
- सुषुम्ना कांड के आसपास मांस पेशियों में जकड़न।
- झुनझुनाहट महसूस होना।
नोटः योग्य चिकित्सक से उपचार न कराने पर अथवा उपेक्षा करने पर अत्यधिक मात्रा मेंसमस्या बढ़ सकती है। इसलिए उक्त लक्षणों के दिखाई देने पर योग्य चिकित्सक से सलाहलें। डा प्रियंका कौशिक (चतुर्वेदी), BAMS, PGDDPN
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Dr. Priyanka Kaushik
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