महिलाओं में पीरियड से पहले एक से दो सप्ताह के दौरान होने वाले तथा पीरियड के दौरान होने वाले शारीरिक मानसिक (Physical mental) और भावनात्मक (Emotional) बदलाव जो सामान्य से हटकर हो तथा दिनचर्या को प्रभावित करें उन्हें मेंस्ट्रूअल सिंड्रोम (Menstrual syndrome) या प्रीमेंस्ट्रूअल सिंड्रोम (Premenstrual syndrome) में रख सकते हैं।
मासिक धर्म के समय क्यों बदलाव होते है तथा क्या होते हैं मेंस्ट्रूअल सिंड्रोम (Why are there changes during menstruation and what are menstrual syndrome) –
पीरियड आने के दौरान होने वाले मानसिक, रासायनिक व हार्मोनल बदलावों का परिणाम है। मुख्यतः फीमेल हार्मोन प्रोजेस्टेरोन मस्तिष्क के न्यूरो ट्रांसमीटर (Neuro transmitter) सेराटोनिन (Seratonin) की कमी का कारण बनता है। सेराटोनिन वह रसायन है जो खुशी की भावना देता है केवल मनुष्य नहीं बल्कि कुछ जानवर भी इससे प्रभावित होते हैं। यह मूड को स्थिर एवं अस्थिर करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। अत्याधिक डिप्रेशन, स्मोकिंग, नियमित एक्सरसाइज ना करने, अधिक वजन, पर्याप्त नींद न लेने, अल्कोहल लेने, अधिक नमक या शुगर लेने या अधिक मात्रा में रेड मीट खाने के कारण मासिक धर्म के समय अनेक लक्षण जो कि महिलाओं को प्रभावित करते हैं उत्पन्न होते हैं।
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पीएमएस या प्रीमेंस्ट्रूअल सिंड्रोम या मेंस्ट्रूअल सिंड्रोम के लक्षण (Symptoms of PMS or Premenstrual Syndrome or Menstrual Syndrome) –
- शरीर के विभिन्न हिस्सों जैसे पैरों (legs) व एड़ियों (Ankles) में सूजन और दर्द|
- गर्भाशय (Uterus) में ऐठन व दर्द होना विशेषकर कमर में बहुत दर्द होना|
- सिर दर्द, चक्कर और हर समय थकान महसूस होना|
- पीठदर्द (back pain), मांसपेशियों एवं शरीर के अन्य हिस्सों में दर्द होना|
- पेट में सूजन और दर्द, स्तनों में भारीपन और दर्द|
- मुंहासे (Acne)|
- नमक और अधिक मीठा खाने का मन|
- कब्ज (Constipation) और डायरिया|
- सिरदर्द, तेज प्रकाश व तेज आवाज से घबराहट |
- मूड स्विंग, चिड़चिड़ापन (Irritability), काम में मन न लगना |
- नींद के पैटर्न में बदलाव|
- चिंता, दुख और डिप्रेशन (depression) भावनात्मक रूप से कमजोर महसूस करना, बात बात में रोने का मन होना|
बचाव के लिए क्या करें (What to do to protect)- पीरियड से कम से कम 2 हफ्ते पहले दिनचर्या में बदलाव कर अस्वास्थ्कर आदतों का त्याग कर स्वस्थ जीवनशैली अपनाना, ज्यादा से ज्यादा पेंडिंग काम, मेहनत के काम, टूर के काम पीरियड से पहले ही निपटा लेना। कॉफी, बाहर का खाना खाने से बचें। कॉफी और अन्य कैफीन युक्त पर मूड पर गहरा असर डालते हैं। उन से घबराहट व अनिद्रा की शिकायत रहती है।
प्रीमेंस्ट्रूअल या मेंस्ट्रूअल सिंड्रोम से राहत के लिए घरेलू उपाय (Home Remedies for Relief of Premenstrual or Menstrual Syndrome)-
आयरन, कैल्शियम, पोटेशियम, मैग्नीज विटामिन बी, फॉलिक एसिड (Folic acid) से भरपूर आहार लेना चाहिए। केले, टमाटर नारियल पानी, संतरे, बैरी, अंगूर, चेरी आदि का अधिक सेवन करें। मासिक धर्म के समय व स्त्राव को ध्यान में रखते हुए आयरन का सेवन करें। यदि मासिक धर्म अधिक है तो खून की कमी हो सकती है एनीमिया हो सकता है इसलिए आयरन युक्त भोजन या लौह तत्व से युक्त पदार्थों का सेवन करें। यदि अधिक आयरन की कमी है तो चिकित्सक परामर्श (Doctor consultation) अनुसार आयरन के सप्लीमेंट्स (Supplements) भी ले सकते हैं। विटामिन सी एक ऐसा एंटी ऑक्सीडेंट है जो इम्यूनिटी (Immunity) स्वस्थ त्वचा तथा आयरन के अवशोषण में मदद करता है, शरीर में अवशोषण विटामिन सी की उपस्थिति से ही होता है इसीलिए आयरन युक्त भोजन के साथ-साथ विटामिन सी लेना भी बहुत आवश्यक तो होता है। विटामिन सी (vitamin-C) खट्टे फलों में, टमाटर, पत्तेदार सब्जियों में होता है| सब्जी, फलों का सलाद पर नींबू को निचोड़ कर खा सकते हैं।
मासिक धर्म के समय नमक कम लें क्योंकि इससे शरीर में पानी इकट्ठा होता है तथा जिससे पैरों में दर्द (Leg pain) व सूजन बढ़ सकती है
गर्भाशय व मांसपेशियों में ऐंठन (Twitch) दर्द हो तो कैल्शियम ले सकती हैं| यह दूध, अंडे पनीर, ड्राई फ्रूट आदि में होता है। कॉफ़ी व चाय का सेवन कम से कम करें। कॉफी और चाय में कैफीन अधिक होता है जो आयरन के शरीर में अवशोषण को रोकता है इसके अतिरिक्त कई महिलाओं में जो कॉफी का अधिक सेवन करती हैं उनमें पीरियड के समय प पेट में दर्द की ज्यादा होता है। यदि चाय और कॉफी का सेवन करें तो आयरन वाली डाइट या भोजन से एक घंटा पहले या बाद में करें।
पेट में दर्द पेट या पेडू में दर्द हो तो तेल की मालिश करके पेट के निचले हिस्से में गर्म पानी के बैग से सेक करना चाहिए। गर्म पानी घूंट घूंट करके पीना चाहिए। ग्रीन टी का सेवन करें।
आयुर्वेदिक औषधियों की बात करें तो दशमूल काढ़ा (Dashmool), ब्राह्मी (Brahmi), अर्जुन (Arjun), तगर (Tagar), शतावरी (Asparagus), जटामांसी (Spikenard) आदि जड़ी बूटियां इस समस्या को दूर करने में बहुत मददगार होती हैं।
- पीरियड्स के दौरान संतुलित भोजन करें।
- शुगर कम खाएं, फलों के रस का पर्याप्त मात्रा में सेवन करें।
- इस दौरान होने वाले अनावश्यक तनाव और डिप्रेशन को कम करने के लिए एक्सरसाइज जरूर करें।
- इसके अतिरिक्त प्राणायाम तथा ध्यान का भी सहारा ले सकते हैं। क्योंकि मासिक धर्म के समय एस्ट्रोजन या प्रोजेस्ट्रोन की कमी से एनर्जी व स्टेमिना कम होता है, इसलिए हल्की कसरत या सैर करें।
- जिम य एरोबिक्स एक्सरसाइज न करें।
इलेक्ट्रोलाइट से भरपूर द्रव मेंस्ट्रूअल सिंड्रोम के लक्षणों को कम करते हैं। पानी और अन्य द्रव जैसे फलों का रस, नारियल पानी, नींबू पानी से शरीर के इलेक्ट्रॉल की कमी को पूरा करती है व लक्षणों का आराम मिलता है। सलाद में नींबू काली मिर्च, काला नमक डालकर नमक की जरूरत को पूरा करें।
गुड़ का सेवन करें इसके लौह तत्व बिना कैलोरी बढ़ाएं एनीमिया से बचाएंगे|
एक एक चुटकी मेथी दाना, हल्दी व कलौंजी का पाउडर दर्द में राहत देता है। एक गिलास छाछ में एक चुटकी हींग व काला नमक मिलाकर पीजिए
चाय के बजाय ग्रीन टी का सेवन कर सकते हैं|
जितना संभव हो सके तनाव से दूर रहें तथा योगाभ्यास (Yoga practice) करें। मेंस्ट्रूअल सिंड्रोम के लक्षणों को रोकने के लिए मासिक धर्म के दौरान ही नहीं बल्कि हमें पूरे महीने के दौरान ही इस तरह की लाइफ स्टाइल रखनी चाहिए ताकि हमें उस उन दिनों में अधिक समस्या ना हो। योगाभ्यास करें स्वस्थ संतुलित भोजन ले। यदि मासिक धर्म के समय स्त्राव अधिक होता है या कम होता है या पेट में बहुत ज्यादा दर्द होता है तो किसी चिकित्सक को दिखाएं। आयुर्वेदिक चिकित्सा (Ayurvedic medicine) एक निरापद चिकित्सा है जो कि हार्मोनल इंबैलेंस को ठीक करती है बिना किसी साइड इफेक्ट के।
छोटी बच्चियां जिनके पीरियड अभी स्टार्ट हुए हैं उन्हें हार्मोनल ट्रीटमेंट(Hormonal treatment) बिल्कुल भी नहीं देना चाहिए। आयुर्वेद में अनेक ऐसी औषधियां हैं जिनके द्वारा एनीमिया तथा मासिक धर्म की अनेक तकलीफों को दूर किया जा सकता है।
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