लकवे (Paralysis) या पक्षाघात में शरीर का प्रभावित हिस्सा या पूरा शरीर काम करना बंद कर देता है। वात दोष (Gout) के असंतुलन के कारण शरीर के अंगों के संवेदात्मक (Sensitive) हिस्सो को क्षति पहुंचती है जिसे अर्धांग (Hemiplegy) कहा जाता है।
पक्षाघात के नियंत्रण हेतु आयुर्वेद में स्नेहन (Lubrication), स्वेदन (Diapne), बस्तीकर्म (Enema) एवं नास्यकर्म (Nectar) का उल्लेख किया गया है। पक्षाघात के उपचार में अश्वगंधा (Ashwagandha), निर्गुन्डी (Nirgundi), बला तथा योगिराज गुग्गुल (Yogiraj Guggul) एवं दशमूलारिष्ट (Dashmularishta) का प्रयोग किया जाता है। शराब, तीखा भोजन और धूम्रपान लकवे का मुख्य कारण है अतः इनका त्यागकर भोजन में द्राक्ष (Grapes), दाल (Lentils), अदरक (Ginger), मूंग (Mung Bean) व अनार (Pomegranate) को सम्मिलित करना चाहिए। पक्षाघात में एक हाथ या पैर प्रभावित होने पर इसे एकांग, पूरे शरीर के प्रभावित होने पर सर्वांग, बोलने में दिक्कत होने पर वक संग तथा चेहरे पर लकवा होने पर इसे अर्दित (Ardit) कहा जाता है। पक्षाघात के लक्षणों में बेसुध (Insensitive) हो जाना, बोलने में दिक्कत आना, हाथ पैरों में कम्पन तथा उनके संचालन (Operations) में असुविधा एवं बेहोशी ओर मुंह से ज़्यादा लार आना होता है।
आयुर्वेद में पक्षाघात (Paralysis) के उपचार हेतु-
स्नेहन (Lubrication), स्वेदन (Diapne), नास्यकर्म (Nectar), बस्तीकर्म (Enema), विरेचन (Purgation) आदि विधियों का उल्लेख किया गया है।
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स्नेहन (Lubrication)-
स्नेहन (Lubrication), में ओषधीय तेलों का लेप प्रभावित हिस्से या पूरे शरीर पर किया जाता है।
स्वेदन (Diapne)-
स्वेदन (Diapne), में गर्म तेल या मिट्टी के प्रभाव से पीड़ित व्यक्ति को पसीना दिलाया जाता है।
बस्तीकर्म (Enema)-
बस्तीकर्म (Enema), एक प्रकार की एनिमा विधि है जिससे शरीर से विषाक्त पदार्थों (Toxins) को बाहर निकाला जाता है।
नास्यकर्म (Nectar)-
नास्यकर्म (Nectar), में नाक के ज़रिये ओषधीय तेल या अर्क डाला जाता है।
पक्षाघात के उपचार में प्रयुक्त ओषधियाँ:-
अश्वगंधा–
अश्वगंधा यह प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने वाली, ऊर्जा दायक एवं नसों ओर मांसपेशियों को शक्ति देने वाली औषधि है। इसका उपयोग काढ़े, पाउडर या घी के रूप में किया जाता है। इसका सेवन गर्म पानी, दूध या शहद के साथ किया जाता है।
बला:-
यह मांसपेशियों तथा विशेष रूप से ह्रदय को शक्ति देने वाली जडी बूटी है। यह नसों की कोशिकाओं (Vein Cells) के निर्माण में सहायक है और लकवा ग्रस्त मरीज़ को शक्ति प्रदान करने वाली जडी बूटी है।
निर्गुन्डी:-
मासपेशियों की सूजन एवं जोड़ो के दर्द को कम करती है। इसका उपयोग काढ़े एवं पाउडर के रूप में किया जाता है। पक्षाघात के मरीजों को निर्गुन्डी (Nirgundi) तेल लगाने से विशेष लाभ मिलता है।
शुंठी:-
इसे सौंठ (Saunt) भी कहा जाता है। यह अर्थराइटिस (Arthritis), अस्थमा (Asthma), उल्टी (Vomiting) एवं गले के रोगों (Diseases of the Throat) में लाभकारी होती है। लकवा ग्रस्त मरीज़ की बेहोशी दूर करने में भी सहायक होती है। इसका सेवन काढ़े, रस या पेस्ट के रूप में किया जाता है। इनके अतिरिक्त रसना, रसोनम, महारास्नादि क्वाथ एवं योग राज गुग्गुल का उपयोग भी पक्षाघात के उपचार में विशेष महत्व रखता है।
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