अश्वगंधा का प्रयोग कितना और कितनी मात्रा में करें

by | Nov 11, 2020 | Ayurvedic herbs and their benefits

आयुर्वेद विश्व की सबसे प्राचीन पद्धति है। यह 5000 साल पुरानी पद्धति है। यह पद्धति केवल रोगों को दूर करने वाली नहीं बल्कि रोग की उत्पत्ति ही नहीं हो इस विज्ञान पर आधारित है। आयुर्वेद का उद्देश्य दोष,वात पित्त, कफ (शरीर को बनाने वाले तत्व) को सामान रखना, शरीर की अग्नि (चयापचय प्रक्रिया/Metabolic Process) को ठीक रखना है। इसी स्वास्थ्य को प्राप्त करने के लिए आयुर्वेद में अनेक औषधीय व जड़ी बूटियों का वर्णन किया गया है। उन्ही जड़ी बूटियों में सबसे अधिक प्रचलित है अश्वगंधा जो कि इस कोरोनावायरस काल में इम्यूनिटी बूस्टर के रूप में सामने आई है। अश्वगंधा संक्रमण से रक्षा करने में बहुत उपयोगी सिद्ध हुई है।

अश्वगंधा का बॉटनिकल नाम WITHANIA SOMNIFERA है। अश्वगंधा की जड़ के चूर्ण का प्रयोग औषधि के रूप में किया जाता है। अश्वगंधा का अर्थ है अश्वगंधा अर्थात जिसकी जड़ से अश्व के सामान गंध आती है उसे अश्वगंधा(Ashwagandha) कहते हैं। महर्षि चरक ने अश्वगंधा को बल्य अर्थात बल को बढ़ाने वाला कहा है। अश्वगंधा न केवल व्यक्ति को शारीरिक बल्कि मानसिक बल भी प्रदान करता है।

शारीरिक बल (Physical Force)- जो व्यक्ति बहुत दुबले-पतले होते हैं उनके शरीर को तंदुरुस्ती देने वाला, मांसपेशियों की वृद्धि करने वाला होता है। अश्वगंधा इसके अतिरिक्त यौन शक्ति को भी अधिक बढ़ाता है।

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मानसिक स्वास्थ्य (Mental Health) अभी तक अनेक प्रयोगों में अश्वगंधा को जो प्रभावी प्रयोग सामने आए हैं वह मानसिक रोगियों में अश्वगंधा अति लाभकारी है। अनिद्रा(Insomnia), हाई-बीपी(High BP), भूलने की बीमारी, चिंतित रहना, शिज़ोफ्रेनिआ, बाइपोलर डिजीज आदि में अश्वगंधा प्रभावी है। आज अनेक प्रकार की बीमारियों का कारण जीवन शैली विकार माना गया है। जैसे थायराइड, पीसीओडी, हाई बीपी, अनिद्रा, डायबिटीज आदि का कारण तनाव या चिंता माना गया है। अश्वगंधा के प्रयोग से टी.एस.एच.(Thyroid stimulating hormone) लेवल कम होता है तथा हाइपोथाइरॉएडिज्म में आराम मिलता है।

अश्वगंधा डायबिटीज में रक्त के शुगर लेवल को कम करती हैं। अश्वगंधा का प्रयोग रात्रि में अनिद्रा के रोगियों में किया जाता है जिससे नींद अच्छी आती है।
अश्वगंधा का प्रयोग कितनी मात्रा में करना चाहिए- चूर्ण का प्रयोग 3 से 5 ग्राम सुबह शाम कर सकते हैं, बच्चे जो कि 15 वर्ष से कम की उम्र के हैं वह 1 ग्राम अश्वगंधा का प्रयोग करें, इसके अतिरिक्त बाजार में अनेक तरह अश्वगंधा टेबलेट व कैप्सूल भी उपलब्ध है आप एक टेबलेट प्रतिदिन का प्रयोग कर सकते हैं और अश्वगंधा का सबसे उत्तम प्रयोग की जो विधि है वह आयुर्वेद के अनुसार क्षीरपाक (Leeward) विधि है|

क्षीर पाक विधि किस प्रकार करें- एक गिलास दूध एक गिलास पानी तथा तीन से चार पांच ग्राम अश्वगंधा चूर्ण (Ashwagandha Powder) का मिश्रण को उबालें जब पानी उड़ जाए तथा दूध शेष रह जाए एक गिलास दूध शेष रह जाए तो छानकर पीएं।

अश्वगंधा के प्रयोग में सावधानी- अधिक खुराक या मात्रा का ध्यान रखें पाचन शक्ति कमजोर वालों को अश्वगंधा की मात्रा कम मात्रा में लेनी चाहिए। अग्निमांद्य (Pyrotechnics) के रोगियों को अधिक प्रयोग नहीं करना चाहिए। ज्यादा प्रयोग करने से भूख कम लगना, कब्ज़(constipation), दस्त आदि हो सकते हैं। अधिक प्रयोग से बार-बार मल और मूत्र की प्रवृत्ति भी हो सकती है आपके आम बनता है या बार-बार चिकने मल का त्याग करते हैं तो अश्वगंधा का प्रयोग नहीं करना चाहिए। अश्वगंधा मोटापे(Obesity) के रोगी जिनके शरीर में मांस की मात्रा बहुत ज्यादा है उन्हें अश्वगंधा का प्रयोग नहीं करना चाहिए क्योंकि अश्वगंधा मांस धातु की वृद्धि कारक कहा गया है। इसके अतिरिक्त जो लो-बीपी(low BP) है या जिन्हे चक्कर आते हैं उन मरीजों को अश्वगंधा प्रयोग नहीं करना चाहिए क्योंकि अश्वगंधा एक तनाव मुक्ति औषधि मानी गई है। डायबिटीज के रोगियों को भी लंबे समय तक अश्वगंधा प्रयोग नहीं करना चाहिए उनका शुगर लेवल कम हो सकता है। शुक्रस्खलन (नाईट-फॉल/Night fall) के रोगियों के लिए भी अश्वगंधा चिकित्सक के परामर्श के अनुसार ही लेना चाहिए। गर्भावस्था व स्तनपान के समय अश्वगंधा का प्रयोग नहीं करना चाहिए। इसके अतिरिक्त अश्वगंधा के प्रयोग से यदि स्किन में रूखापन या मुंह में रूखापन हो तो इसके प्रयोग को बंद कर देना चाहिए। यह सभी अश्वगंधा के साइड इफेक्ट परमानेंट नहीं है। आयुर्वेद में संस्कार व योग आदि के द्वारा औषधि के प्रयोग का वर्णन है अर्थात आयुर्वेद चिकित्सक के परामर्श के द्वारा अश्वगंधा को लेने के तरीके या अश्वगंधा चूर्ण के साथ अन्य औषधियों को मिलाकर भी अश्वगंधा का लाभ में भी सभी रोगों में प्राप्त कर सकते हैं।

Dr Neha
Compiled By: Dr. Neha Ahuja
(BAMS, NDDY, DNHE)

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