फाइलेरिया की आयुर्वेदिक दवा एवं उपचार

by | Nov 23, 2020 | Ailment

फाइलेरिया रोग (Filarial Disease), गोल कृमिया (Round Worm) या सूत्र कृमि (Thread Worm) के कारण होने वाला संक्रमण है, जो मच्छर के काटने से फैलता है।

फाइलेरिया के प्रमुख लक्षण :

सिरदर्द, ठंड लगना, बुखार आदि होते हैं। रोग के बढ़ने की वजह से बाह्य जननांगों (External Genitals), हाथों, पैरों या शरीर के अन्य भागों में सूजन आ सकती है। आयुर्वेद में फाइलेरिया के उपचार में विभिन्न कृमिरोधी (Anticonvulsant) एवं परजीवी रोधी (Anti Parasitic) जड़ी बूटियों का उल्लेख मिलता है जैसे- विडंग (Widding), गुडुची (Guduchi), हरीतकी (Haritaki), मंजिष्ठा (Manjistha) आदि। इसके साथ ही लेप (Coating), वमन (Vomit) आदि विधियों का प्रयोग भी किया जाता है।

गुडुची (Guduchi)–

यह ज्वर रोधी (Antipyretic), संक्रमण रोधी (Anti infection) एवं सूजन कम करने वाली औषधि है, इसलिए इसका उपयोग फाइलेरिया में किया जाता है।

 कुटज (Kutaj)-

इस औषधि का प्रयोग गोली, पाउडर या काढ़े (Powder or Decoction) के रूप में किया जाता है। वमन (Vomit) के लिए आयुर्वेद में कुटज (Kutaj) के उपयोग का उल्लेख मिलता है।

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विडंग (Widding)

यह एक शक्ति प्रदान करने वाली औषधि है, जिसके कृमिरोधी (Anticonvulsant) गुणों के कारण इसे फाइलेरिया के उपचार में प्रयुक्त किया जाता है। इसका उपयोग तेल के रूप में किया जाता है।

मांजिष्ठा (Manjistha)–

यह रक्त शोधक जड़ी बूटी काढ़े, पाउडर या पेस्ट के रूप में प्रयोग की जाती है। रक्त शोधक (Antiscorbutic) होने के कारण यह फाइलेरिया में सूजन को कम करती है।

हरीतकी (Haritaki)

यह ओषधि पाचन तंत्र (Digestive System) एवं तंत्रिका तंत्र (Nervous System) से संबंधित रोगों के इलाज में मदद करती है। इसके रचक एवं ऊर्जादायक गुणों (Energetic Qualities) के कारण यह शरीर से मल के साथ कृमि निवारक (Worm Deterrent) का कार्य करती है। हरित्की का प्रयोग अरंडी के तेल (Castor Oil) के साथ फाइलेरिया के उपचार में आराम देता है।

सप्तांग गुगगुल (Weeks Guggul)

इस मिश्रण में गुगगुल (Guggul) के साथ त्रिफ़ला (Triphala), त्रिकटु (Trikatu), मारीच (Marich), पिप्पली (Pippali), शूंठी (Sleuth) आदि का प्रयोग किया जाता है। इस औषधि के प्रयोग से फाइलेरिया (Filarial) के कारण शरीर में आने वाली सूजन कम होती है।

नित्यानंद रस (Nityananda juice)–

इस ओषधि में प्रमुख रूप से हरितकि (Haritaki) का प्रयोग किया जाता है। फाइलेरिया में बुखार के साथ ठंड का अनुभव होता है जिसे यह ओषधि दूर करती है। इसके साथ ही यह बदन दर्द एवं असहजता (Discomfort) को भी दूर करने में सहायक सिद्ध होती है।

इनके अतिरिक्त कड़वे या तीखे पदार्थों का भोजन के साथ उपयोग करें। अरंडी का तेल (Castor Oil) एक कृमिनाशक दवा है, अतः फाइलेरिया के रोगियों को इसका सेवन लाभ देता है।

 

Dr Neha
Compiled By:
Dr. Neha Ahuja
(BAMS, NDDY, DNHE)

 

 

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