आयुर्वेदिक गर्भ संस्कार

by | Dec 16, 2020 | Health Tips & Treatments

संस्कार का अर्थ है, गुनु का अंतर धान या गुणों का प्रवेश कराना| भारतीय संस्कृति में 16 संस्कारों का वर्णन है इनमें से एक है गर्भ संस्कार (Gestation ceremony)| सामान्यतः यह देखा गया है कि गर्भ संस्कार से यह समझा जाता है कि गर्भावस्था के दौरान किया जाने वाला अच्छा व्यवहार या अच्छा आहर है, लेकिन आयुर्वेद में गर्भ संस्कार का अर्थ गर्भावस्था के पूर्व का समय भी है जब माता व पिता को गर्भधारण (Conception) के लिए तैयार किया जाता है| माता पिता के बीज या अंडे व शुक्राणु को इस प्रकार से पोषित किया जाता है एक दिव्य संतान की प्राप्ति हो| गर्भ संस्कार का मतलब गर्भावस्था के पूर्व गर्भावस्था के दौरान तथा प्रसव के दौरान, बालक के जन्म के समय से 1 वर्ष तक का काल गर्भ संस्कार में ही लिया जाता है

आयुर्वेद के अनुसार संतान प्राप्ति के लिए चार तत्व की आवश्यकता होती है- क्षेत्र (Domain), जल (Water), बीज (seed), रितु (Whether) | जैसे किसान को खेती करने के लिए अच्छे बीज, अच्छे मौसम [सही समय] ,सही क्षेत्र [जमीन ] व जल की आवश्यकता होती है उसी तरह गर्भ के धारण के लिए भी अच्छे बीज [अंडे व शुक्र धातु], रितु [ महावारी का नियमित रहना], क्षेत्र [यूट्रस (Utrus) या गर्भाशय का ठीक रहना] जल या पोषण होना आवश्यक है|
जिस तरह एक किसान खेती करने से पहले एक अच्छे बीज का चुनाव करता है इसीलिए माता-पिता के लिए भी आवश्यक है कि गर्भधारण (Conception) के लिए आयुर्वेद के शास्त्रों में बताए गए अनेक औषधीयों से अपने बीज की पुष्टि करके ही गर्भधारण के तरीके को अपनाएं|
गर्भ संस्कार का दूसरा चरण या फेस गर्भधारण के पश्चात होता है|आयुर्वेद के अनुसार स्त्री जिस प्रकार की संतान की कामना गर्भावस्था में करती है उसे उसी प्रकार की संतान की प्राप्ति होती है| माता का एक-एक क्षण व बच्चे का एक-एक कण एक दूसरे से जुड़ा है| यह एक रिसर्च में स्पष्ट है कि बच्चे का 80% मानसिक विकास गर्भावस्था में हो जाता है इसीलिए गर्भ संस्कार में मां को आहार– क्या खाएं क्या ना खाएं, विहार– किस प्रकार का जीवन शैली जीएं , गर्भ संवाद- अपने बच्चे से बात करें यह सब सिखाया जाता है|

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गर्भ संस्कार में विभिन्न बीज मंत्रों (Beej Mantra) के उच्चारण से, आदर्श पुत्रों के जीवन चरित्र पढ़ने से, देश भक्ति के भाव बढ़ने से, विशेष प्रकार के नाद व संगीत सुनने से, ओम (OM) के उच्चारण से गर्भावस्था में शिशु के मन पर उसका गहरा प्रभाव पड़ता है| यह संस्कार उसके साथ सारे जीवन चलता है|
किसी भी महल का नींव जितनी मजबूत होती है उतना ही मजबूत महल बनता है शिशु को महान बनाने के लिए सबसे मजबूत नींव है माता का गर्भ| केवल संस्कार ही नहीं गर्भस्थ शिशु (A womb with a Boo) की शारीरिक पोषण के लिए भी आयुर्वेद में अनेक औषधीयाँ वर्णित है जो कि बालक की शारीरिक व मानसिक पोषण भी करती हैं| कई महिलाओं में अबॉर्शन या गर्भपात (Abortion) की संभावनाओं को आयुर्वेदिक औषधियां कम करती हैं| महर्षि चरक (Maharishi Charak) और महर्षि सुश्रुत (Maharishi Sushruta) ने आयुर्वेदिक शास्त्रों में मसानुमासिक परिचर्या का वर्णन किया है अर्थात किस माह में क्या खाएं जिससे की माता व गर्भ का विकास संपूर्ण हो|

इसके अलावा सिजेरियन डिलीवरी (Cesarean delivery) से बचने के लिए भी आयुर्वेद में गर्भिणी की परिचर्या का वर्णन है| आयुर्वेद में आठवें और नौवें महीने में तेल की अनुवासन वस्ति (Migration system) दी जाती है जिससे पेल्विक मसल्स (Pelvic muscles) लूस होती हैं| वह नॉर्मल प्रसव (Delivery) में मदद हो जाता है| इसके अलावा अनेक योगासन जो कि महिलाओं के सुरक्षित प्रसव में सहायता प्रदान करते हैं उनका प्रशिक्षण भी गर्भ संस्कार में दिया जाता |
गर्भ संस्कार का तीसरा स्टेप है प्रसव व प्रसव पश्चात क्या करें-
आयुर्वेद शास्त्रों में प्रसव के दौरान और प्रसव पश्चात महिलाओं को क्या खिलाएं व कैसे उसकी देखभाल करें सभी का वर्णन है | जन्म के पश्चात शिशु की देखभाल कैसे करें इसका संपूर्ण वर्णन है| प्रसव के पश्चात महिलाओं को वात रहित यानी ऐसा स्थान जहां पर बाहरी हवा का आना जाना ना हो ऐसे कमरे में रखने का विधान है| वातशामक आहार (Gout diet) का सेवन, वातशामक तेल की मालिश ,वातशामक घृत (Ghee) करवाने को कहा गया है|
प्रसव के पश्चात जन्मे शिशु को स्वर्णप्राशन (Gold medal) या सोने की शलाका (Gold plate) से घी व मधु चटाना चाहिए , बच्चे की तेल से मालिश करनी चाहिए|
महर्षि कश्यप (Maharishi Kashyap) के अनुसार यदि जन्म से 6 महीने तक शिशु को स्वर्ण प्राशन करवाया जाए तो शिशु श्रुतधर (Acclaimed) हो जाता है ,श्रुतधर का अर्थ है वह इतना बुद्धिमान हो जाता है कि केवल सुनकर बातों को याद रख सके |
गर्भ संस्कार एक ऐसी लंबी प्रक्रिया है जो कि जन्म से पूर्व गर्भवस्था के दौरान, जन्म के पश्चात तक बालक का संपूर्ण विकास करती है| हमारी भारतीय संस्कृति में गर्भ संस्कार हमारे वेदों द्वारा तथा आयुर्वेद (Ayurveda) के द्वारा दिया गया ऐसा वरदान है कि इसका लाभ उठाकर हम सब हमारी नई पीढ़ी एक ऐसी पीढ़ी को जन्म दे सकती है जो कि न केवल संस्कृति के तौर पर, बुद्धि के तौर पर भी बलवान होगी और देशभक्ति के भाव से युक्त भी होगी|

Dr Neha
Compiled By: Dr. Neha Ahuja
(BAMS, NDDY, DNHE)

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