आयुर्वेद के अनुसार वात, पित्त (Bile), कफ दोष (Kapha Dosha) विकार के कारण कैंसर (Cancer) की उत्पत्ति होती है। जंक फूड, तम्बाकू, शराब एवं धूम्रपान से कैंसर की उत्पत्ति होती है। इसके अतिरिक्त सूर्य की पराबैंगनी किरणों (Ultraviolet Rays Of The Sun) एवं वायु प्रदूषण (Air Pollution) से भी कैंसर की उत्पत्ति होती है।
आयुर्वेद में कैंसर के उपचार में स्नेहन (Lubrication), स्वेदन (diapne), क्षारकर्म (Base Work), शस्त्रकर्म (Surgery) का उल्लेख मिलता है। आयुर्वेद में कैंसर के ट्यूमर (Tumor) के उपचार में गुडूची (Guduchi), हरिद्रा (Haridra), अश्वगंधा (Ashwagandha), पिप्पली (Pippali), यष्टिमधु (Yashtimadhu), आदि जड़ी बूटियों का प्रयोग किया जाता है।
स्नेहन (Lubrication):-
इस विधि में शरीर से विषैले पदार्थों (अमा) को बाहर निकाला जाता है। इस प्रक्रिया में पूरे शरीर या प्रभावित हिस्से पर गर्म ओषधीय तेल (Hot Medicinal Oil) डाला जाता है, जिससे विषाक्त पदार्थ (Toxic Substances) पिघलकर पाचन मार्ग में आ जाते हैं और उसके बाद शरीर से निष्कासित (Expelled) हो जाते हैं। इस प्रक्रिया में तेलों का चयन रोग के कारण के आधार पर किया जाता है।
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विरेचन (Purgation):-
इस विधि में रेचक ओषधि जैसे कि रुबर्ब (Rhubarb) आदि के प्रयोग से मल त्याग (Excretion) करवाया जाता है। रेचक ओषधियों द्वारा शरीर में एकत्रित विषैले पदार्थों को मल के साथ निष्कासित किया जाता है। विरेचन विधि के पश्चात रोगी को दाल, चावल जैसा हल्का भोजन दिया जाता है।
बस्तीकर्म (Vasti Karm):-
यह प्रक्रिया एक प्रकार की एनिमा (Enema) विधि के समान है, किन्तु इस विधि में छोटी-आंत्र (Small Bowel), बड़ी-आंत्र (Large Bowel) एवं गुदा-मार्ग (Anal Passage) की सफाई की जाती है। इस प्रक्रिया में विषैले पदार्थ शरीर से बाहर निकाले जाते हैं।
स्वेदन (Diapne):-
यह पंचकर्म का एक महत्वपूर्ण भाग है, जिसमें रोगी को भाप चिकित्सा (Steam Therapy) दी जाती है। इसका उद्देश्य भाप से शरीर में एकत्रित अमा को पिघलाकर पाचन मार्ग (Digestive Tract) से शरीर के बाहर निकालना। स्वेदन की अनेक विधियाँ होती हैं लेकिन कैंसर पीडितों में तप (Heat) एवं उपनाह विधि (Poultice Method) का प्रायः प्रयोग किया जाता है।
तप (Heat):-
यह विधि वात एवं कफ दोषो के कारण होने वाले रोगों के उपचार में प्रयुक्त होती है। इस विधि में गर्म धातु (Hot Metal) अथवा कपड़े से सिकाई (Fabric Frown) की जाती है।
उपनाह (Poultice):-
यह विधी वात दोषो के विकारों के उपचार में विशेष रूप से प्रयुक्त होती है। इस विधि में शरीर के प्रभावित हिस्से पर गर्म पुल्टिस (Hot Chloasma) का प्रयोग किया जाता है। यह पुल्टिस विशेष ओषधियों के मिश्रण से तैयार की जाती है।
रक्तमोक्षण (Hemorrhage):-
इस विधि द्वारा शरीर में एकत्रित विषाक्त पदार्थ (Toxic Substances) को रक्त के माध्यम से बाहर निकाला जाता है। इस प्रक्रिया के दौरान गाय के सींग (Cow Horn) या जौंक (Leech) का उपयोग विषैले पदार्थों को शरीर से बाहर निकालने के लिए किया जाता है।
कैंसर की आयुर्वेदिक दवा (Ayurvedic Medicine For Cancer):-
कैंसर के उपचार में विशेष रूप से पिप्पली (Pippali), गुडूची (Guduchi), अश्वगंधा (Ashwagandha), यष्टिमधु (Yashtimadhu), ब्राह्मी (Brahmi), हरिद्रा (Haridra), त्रिफ़ला (Triphala), रुद्ररस (Rudraras), कांचनार गुग्गुल (Kanchanar Guggul), महा मंजिष्ठा क्वाथ (Maha Manjistha Decoction) आदि जडी बूटियों एवं ओषधियों का प्रयोग किया जाता है।
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