आयुर्वेद में भगन्दर (Fistula) को असाध्य रोगों (Incurable Diseases) में से एक माना गया है। इस रोग में अंडकोषों (Testicles) एवं गुड (Jaggery) के बीच दर्द का अनुभव होता है। इस रोग में गुदानाल (Anal Canal) में फ़ोड़े फुंसी होकर उनमें पस पड़ सकता है, जिससे संक्रमण (Infection) होने की आशंका बनी रहती है। आयुर्वेद में भगन्दर (Fistula) के उपचार में त्रिफ़ला (Triphala), आरग्वध (Hymnody), हरीतकी (Haritaki) तथा आरोग्यवर्धिनी वटी (Arogyavardhini Vati), त्रिफ़ला गुग्गुल (Triphala Guggul) एवं अभयारिष्ट (Abhishrishta) का उपयोग किया जाता है। इसके साथ ही फल, सब्ज़ियों एवं रेशेदार पदार्थों का उपयोग अधिक करने की भी सलाह दी जाती है।
भगन्दर (Fistula) के उपचार में प्रयुक्त जडी बूटियां:
हरीतकी (Chebulic Myrobalans)– इसे हरड़ (Harad) भी कहा जाता है। यह पाचन तंत्र (Digestive System) एवं उत्सर्जन तन्त्र (Excretory System) के रोगों के उपचार में विशेष रूप से प्रयोग की जाती है। यह सूजनरोधी (Anti inflammatory), घाव की सफाई (Wound Cleaning) एवं उपचार में सहायक होने के कारण भगन्दर के उपचार में प्रयुक्त होती है। यह काढ़े, पेस्ट, पाउडर के रूप में उपलब्ध होती है तथा गुनगुने पानी के साथ इसके चूर्ण का सेवन किया जाता है।
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आरग्वध (Hymnody)– यह जडी बूटी घाव भरने तथा सूजन कम करने वाली होती है, जिस कारण भगन्दर (Fistula) के उपचार में इसका प्रयोग किया जाता है। भगन्दर में आराम पाने के लिए इसके चूर्ण का गुनगुने पानी के साथ सेवन किया जाता है।
त्रिफ़ला (Triphala)– इसका प्रयोग मुख्य रूप से कब्ज (Constipation) के उपचार में किया जाता है। इसके फंगल रोधी एवं वायरस रोधी गुणों के कारण भगन्दर (Fistula) से हुए संक्रमण को रोकने में इसका प्रयोग किया जाता है। गुनगुने पानी के साथ इसके चूर्ण का सेवन कब्ज़ और भगन्दर दोनों में आराम देता है।
कृष्णतिल (Black Sesame)– काले तिल के प्रयोग से मूत्र कम आने के साथ ही कब्ज (Constipation) में भी आराम मिलता है। इसके घाव भरने की क्षमता के कारण इसका प्रयोग भगन्दर में किया जाता है।
त्रिफ़ला गुग्गुल (Triphala Guggul)– यह त्रिफ़ला (Triphala), त्रिकटु (Trikatu) एवं गुग्गुल (Guggul) का मिश्रण है। इसके सूजन रोधी गुणों के कारण भगन्दर के उपचार में इसका उपयोग किया जाता है, गुनगुने पानी के साथ त्रिफ़ला गुग्गुल के सेवन की सलाह दी जाती है।
अभ्यरिष्टम (Abhirishtram)– अरिष्ठ एक प्रकार का काढ़ा होता है। अभ्यरिष्टम में चवक (Chavak), गोक्षुरा (Gokshura), शुंठी (Shunthi), अरंडी की जड़ों (Castor Roots) आदि का मिश्रण होता है। अभ्यरिष्टम (Abhirishtram) के प्रयोग से कब्ज में आराम मिलता है इसलिये फिस्टुला या भगन्दर के उपचार में अभ्यरिष्टम के सेवन की सलाह दी जाती है। गुनगुने पानी के साथ अभ्यरिष्ट मलिया जाता है।
आरोग्यवर्धिनी-वटी (Arogyavardhini-Vati)– यह औषधि वात, पित्त और कफ दोष के विकारों में लाभदायक है। पाचन तंत्र पर काम करने के लिए इसमें हरीत की या हरड़ जैसी रेचक जडी बूटियाँ भी होती हैं जो कब्ज़ से राहत देती हैं और मलत्याग में होने वाली तकलीफ को कम करती हैं। इसी कारण इसे भगन्दर (Fistula) के उपचार में प्रयोग किया जाता है। इसके अतिरिक्त भगन्दर (Fistula) के मरीजों को गर्म पानी में बैठने की सलाह भी आयुर्वेद में दी गई है जिसे उष्णोदक (Thermal) उदगाह (Opening) कहा जाता है।
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