आयुर्वेद में साइटिका को गृध्रसी रोग कहा गया है। पैर में होने वाली पीड़ा के कारण व्यक्ति के चलने का तरीका गिद्ध के समान हो जाता है इसलिए इसे गृध्रसी कहा गया है। अक्सर यह रोग बढ़े हुए वातदोष एवं दूषित कफदोष के कारण होता है। साइटिका में पीड़ा नितंबसंधि (Buttocks) के पीछे से प्रारम्भ होकर धीरे-धीरे बढ़ती हुई साइटिका नर्व के अंगूठे तक फैलती है। पीड़ा के साथ कभी कभी शून्यता भी आ जाती है और कई बार गम्भीर व असहनीय पीड़ा का सामना भी हो सकता है। अक्सर यह यह समस्या 50 वर्ष की उम्र के बाद ही देखी जाती है, लेकिन अधिक मेहनत करने वाले या भारी वजन उठाने वाले व्यक्तियों में यह कभी भी हो सकता है। अंकुरित अनाज (Sprouted grains), डिब्बाबंद भोजन (canned food), शुष्क एवं शीतल पदार्थ, कटु तथा कषाय रसयुक्त द्रव्यों के अधिक सेवन करने से या फिर अत्यधिक उपवास करने से, बहुत देर खड़े रहने या बैठे रहने से वातदोष की वृद्धि होती है जिस कारण गृध्रसी रोग की सम्भावना बढ़ जाती है। इसके अलावा अधिक चलने से, मलावरोध (Prolapse) होने पर, कमर संबंधी रीढ़ की हड्डी की निचली नलिका में असामान्य संकुचन के कारण रीढ़ की हड्डी और साइटिका तंत्रिका की जड़ों पर दबाव पड़ता है।
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साइटिका में आयुर्वेदिक उपचार (Ayurvedic treatment in sciatica) :
- साइटिका में निर्गुण्डी जड़ी -बूटी (Nirgundi herb) के गाढा काढ़े का भाप स्नान दिया जाता है।
- गुग्गुलु जड़ी बूटी का प्रयोग कमर के निचले हिस्से के इलाज के लिये सबसे पुराना उपचार है।
- साइटिका में अरण्डी की जड़ (Castor root) एवं छाल दोनों का काढ़ा पिया जा सकता है।
- अश्वगंधा (Ashwagandha) को तिल के तेल के साथ रगढ़ने पर तंत्रिका दर्द .सुन्नता ,पीठ दर्द कम करने में सहायक होती है।
- सफेद विलो छाल का प्रयोग सूजन कम करने में सहायक होता है।
- मेथी के बीज (Fenugreek seeds) साइटिका के दर्द होने पर सुबह एक चम्मच पानी के साथ निगल लें।
- अजवायन में प्राकृतिक सूजनरोधी गुण मौजूद होते हैं। अजवायन को एक गिलास पानी में डालकर अच्छे से उबाल लें, उसके बाद इसे छानकर पानी को पियें।
- सहिजन (Horseradish) की पत्तियाँ, अशोक की छाल और अजवायन इन सब सामग्रियों को 2 लीटर पानी में उबालकर काढ़ा बना लें। इस काढ़े को सुबह-शाम नियमित रूप से लेने से की समस्या दूर हो जाती है|
साइटिका में इन बातों का ध्यान रखें (Keep these things in the Sciatica) –
- लम्बे समय तक एक ही जगह पर बैठे रहने से बचें|
- झुककर भारी वस्तुओं को या ज्यादा वजन न उठाएँ। इससे रीढ़ की हड्डियों के जोड़ों पर अधिक जोर पड़ता है। भारी वजन उठाकर अधिक चलने से बचें।
- कार्य की वजह से आपको घण्टों कुर्सी पर बैठकर काम करना पड़ता है तो कुर्सी में कमर के हिस्से पर एक छोटा-सा तकिया लगा, सीधा बैठे।
- चिकित्सक की सलाह के अनुसार रीढ़ की हड्डी से संबंधित कसरत (Exercise) करें।
- साइटिका से बचने के लिए बढ़ती उम्र में रीढ़ को लचीला बनाए रखने के लिए योग और व्यायाम (Yoga and exercise) का अभ्यास करना जरूरी है।
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